आरबीआई बनाम सरकार: पहली बार सेक्शन 7 का इस्तेमाल, इस्तीफा दे सकते हैं गवर्नर उर्जित पटेल
केंद्र सरकार ने आरबीआई ऐक्ट,
1934 के तहत मिले अधिकार का इतिहास में पहली बार इस्तेमाल करते हुए आरबीआई को सीधे-सीधे निर्देश दिए हैं। सेक्शन 7 के तहत आरबीआई को सरकार के ये निर्देश
मानने ही पड़ेंगे। इस बीच आशंका यह जताई जाने लगी है कि गवर्नर उर्जित पटेल पद से इस्तीफा दे सकते हैं।
हाइलाइट्स
RBI के साथ अनबन के बीच मोदी सरकार ने आरबीआई ऐक्ट, 1934 के सेक्शन 7 के तहत मिले अधिकारों का ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया.
इससे पहले आरबीआई के 83 वर्षों के इतिहास में कभी, किसी सरकार ने सेक्शन 7 का इस्तेमाल नहीं किया था.
अगर केंद्र सरकार को लगता है कि सार्वजिनक हित के लिए RBI को खास तरह के निर्देश दिया जाना चाहिए तो सेक्शन 7 उसे ऐसा करने का अधिकार देता है.
एमसी गोवर्धन
रंगन, नई दिल्ली
विभिन्न मुद्दों
पर जारी मतभेदों के बीच मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
(आरबीआई) के खिलाफ ‘ब्रह्मास्त्र’ का इस्तेमाल कर दिया है। आरबीआई ऐक्ट, 1934 के तहत केंद्र सरकार को मिले इस अधिकार का इस्तेमाल इतिहास में पहली बार किया गया है। आरबीआई ऐक्ट के सेक्शन 7 के तहत सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सार्वजनिक हित के मुद्दे पर आरबीआई को सीधे-सीधे निर्देश दे सकती है, जिसे आरबीआई मानने से इनकार नहीं कर सकता।
इस्तीफा दे सकते हैं उर्जित पटेल: सूत्र
इस बीच, आशंका जताई जाने लगी है कि सरकार और आरबीआई के बीच खटास बढ़ सकती है। आशंका यह भी जताई जाने लगी है कि आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे सकते हैं। न्यूज चैनल्स CNBC-TV18
और ET Now ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि पटेल अपने पद से इस्तीफा
दे सकते हैं।
जानें,
किन 10 मुद्दों
पर RBI और सरकार के बीच खींचीं तलवारें
दो पत्र के जरिए RBI को निर्देश
इकनॉमिक टाइम्स को पता चला है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट, 1934 के सेक्शन 7 के तहत सरकार को मिले अधिकार के तहत बीते एक-दो सप्ताह में आरबीआई गवर्नर को दो अलग-अलग पत्र भेजे जा चुके हैं। सरकार ने केंद्रीय बैंक को पत्र भेजकर नॉन-बैंकिंग
फाइनैंशल कंपनियों
(NBFCs) के लिए लिक्विडिटीए कमजोर बैंकों को पूंजी और लघु एवं मध्यम उद्योगों (SMEs) को कर्ज प्रदान करने का निर्देश दिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार के इसी प्रत्याशित कदम से आरबीआई के डेप्युटी-गवर्नर विरल आचार्य को आगबबूला हो गए थे और केंद्र सरकार को आरबीआई की स्वतंत्रता पर कुठाराघात करने के घातक परिणामों की चेतावनी दे डाली। बहरहाल, आरबीआई के प्रवक्ता को ईमेल से भेजे गए सवाल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
कैसे उठी सेक्शन 7 की बात?
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट,
1934 की धारा
7 कहती है, ‘केंद्र सरकार सार्वजनिक हित के लिए अनिवार्य मानते हुए बैंक के गवर्नर से मशविरे के बाद समय-समय पर इस तरह के निर्देश दे सकती है। ‘सेक्शन 7 के तहत आरबीआई को निर्देश दिए जाने का मामला पहली बार तब आया जब कुछ बिजली उत्पादक कंपनियों ने आरबीआई के 12 फरवरी को जारी सर्कुलर को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी। इस सर्कुलर में डिफॉल्ट हो चुके लोन को रीस्ट्रक्चरिंग स्कीम में डालने से रोका गया है। आरबीआई के सलहाकार ने जब बताया कि कानूनी तौर पर सरकार सेंट्रल बैंक को आदेश दे सकती है, तो कोर्ट ने अगस्त महीने में जारी अपने आदेश में कहा कि सरकार ऐसा निर्देश
देने पर विचार कर सकती है।
सरकार के इस आक्रमक रवैये से अकैडमिक्स और एक्सपर्ट्स का एक खेमा उत्तेजित होकर आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर सकता है। इसकी बनागी दिखने भी लगी है। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने ट्वीट कर आरोप लगाया है कि सरकार अर्थव्यवस्था के तथ्यों को छिपा रही है और बेचैन है।
If, as reported,
Government has invoked Section 7 of the RBI Act and issued unprecedented
‘directions’ to the RBI, I am afraid there will be more bad news today
दरअसल,
सेक्शन 7 के इस्तेमाल के बाद केंद्रीय बैंक के पास अपनी मर्जी से फैसले करने की गुंजाइश बहुत कम रह जाती है। एक डर यह भी है कि अब आगे की सरकारें आरबीआई के साथ छोटे-छोटे मुद्दों पर भी मतभेद होने पर इस सेक्शन का इस्तेमाल करते हुए अपना अजेंडा थोपने लगेंगी।
सरकार पावर सेक्टर में फंसे कर्जों (नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स यानी एनपीए) को लेकर तय नियमों में ढील चाहती है। मौजूदा नियमों के तहत लोन डिफॉल्ट पर कंपनियों को बैंकरप्ट्सी कोर्ट में घसीटने का प्रावधान है। एक बार कंपनियां इस कोर्ट में चली गईं तो उन्हें या तो बिकना पड़ता है या उसे बचाने के लिए सरकार को फंडिंग देनी पड़ती है।
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