अयोध्या / जस्टिस यूयू ललित ने खुद को बेंच से अलग किया, अगली सुनवाई 29 जनवरी को



* पांच जजों की बेंच में जस्टिस यूयू ललित की जगह अब नए जस्टिस का नाम तय होगा
* उनके अलावा बेंच में चीफ जस्टिस गोगोई,जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़
* इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर होनी है सुनवाई
नई दिल्ली. अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई गुरुवार को फिर एक बार टल गई। इसकी नई तारीख 29 जनवरी तय की गई है। कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने पांच जजों की बेंच में जस्टिस यूयू ललित के होने पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा- मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि आप 1994 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के वकील रहे हैं। यह बाबरी केस से जुड़ा अवमानना का मामला था। हालांकि, मैं नहीं चाहता कि आप बेंच से अलग हों। इसके बाद जस्टिस ललित खुद ही बेंच से अलग हो गए।
राजीव धवन ने यह केस तीन जजों की बेंच की बजाय पांच जजों की बेंच के पास भेजने पर भी सवाल उठाए। हालांकि, कोर्ट ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।
रजिस्ट्री से पूछा- कब तक केस सुनवाई के लिए तैयार होगा
इस केस के सात भाषाओं के 8000 दस्तावेजों का ट्रांसलेट किया जाना है, जो पूरा नहीं हो पाया है। ऐसे में बेंच ने कोर्ट की रजिस्ट्री को एक रिपोर्ट सौंपने को कहा है जिसमें बताया जाएगा कि यह काम अभी कितना बाकी है और केस कब तक सुनवाई के लिए तैयार हो जाएगा।
14 अपीलों पर होनी है सुनवाई
पहले इस मामले की सुनवाई पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली तीन सदस्यीय बेंच कर रही थी। 2 अक्टूबर को उनके रिटायर होने के बाद इस केस को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली दो सदस्यीय बेंच में सूचीबद्ध किया गया। इस बेंच ने 4 जनवरी को केस की सुनवाई की तारीख 10 जनवरी तय की थी। मंगलवार को इसके लिए पांच जजों की बेंच तय की गई। यह सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर होनी है।
लोकसभा चुनाव की वजह से मंदिर पर राजनीति गरमाई
लोकसभा चुनाव नजदीक होने की वजह से राम मंदिर मुद्दे पर राजनीति भी गरमा रही है। केंद्र में एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने कहा है कि अगर 2019 चुनाव से पहले मंदिर नहीं बनता तो यह जनता से धोखा होगा। इसके लिए भाजपा और आरएसएस को माफी मांगनी पड़ेगी। उधर,केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही मानना चाहिए। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि न्यायिक प्रकिया पूरी हो जाने के बाद एक सरकार के तौर पर जो भी हमारी जिम्मेदारी होगी हम उसे पूरा करने के लिए सभी प्रयास करेंगे।
क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। शीर्ष अदालत ने मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले आठ साल से है।

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